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ट्रम्प का 'कोर फाइव' सुपरक्लब: क्या C5, G7 की जगह लेगा? भारत की भूमिका और वैश्विक शक्ति में बदलाव

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तैयार हो जाइए दुनिया की सबसे बड़ी वैश्विक शक्ति परिवर्तन की खबर के लिए! खबरें आ रही हैं कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक ऐसी नई और क्रांतिकारी योजना पर काम कर रहे हैं जो G7 जैसे दशकों पुराने पारंपरिक विश्व गठबंधनों को पूरी तरह से किनारे कर सकती है। अफवाहें क्या हैं? एक नया, अति-विशिष्ट समूह, जिसे 'कोर फाइव' या C5 कहा जा रहा है, जो दुनिया के सबसे बड़े फैसले लेने के तरीके को बदल देगा। और सबसे बड़ी खबर? इस ग्रुप में अमेरिका के साथ-साथ भारत, चीन और रूस को भी शामिल किया जा सकता है! यह कहानी वायरल हो रही है क्योंकि यह सिर्फ एक राजनीतिक बदलाव नहीं है, यह इस बात पर पुनर्विचार है कि वैश्विक मंच पर असली शक्ति किसके पास है।

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क्या है 'कोर फाइव' (C5) और यह इतना वायरल क्यों हो रहा है?

G7 (ग्रुप ऑफ सेवन) एक ऐसा समूह है जिसमें अमेरिका, यूके, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान जैसे अमीर और लोकतांत्रिक देश शामिल हैं। यह लंबे समय से धनी और लोकतांत्रिक दुनिया का क्लब रहा है।

प्रस्तावित C5 उस पुरानी नियम पुस्तिका को पूरी तरह से खारिज करता है!


चौंकाने वाले सदस्य:

रिपोर्ट्स के अनुसार, नए 'कोर फाइव' में निम्नलिखित देश शामिल होंगे:

1.संयुक्त राज्य अमेरिका (US)

2.चीन (China)

3.रूस (Russia)

4.भारत (India)

5.जापान (Japan)

यह लाइनअप ही इस खबर को विस्फोटक बना रहा है! यह अमेरिका, रूस और चीन जैसे पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों को एक साथ लाता है, और भारत - एक विशाल लोकतांत्रिक और आर्थिक शक्ति - को जापान के साथ मेज पर बैठाता है। यूरोप, जो अमेरिका का एक पारंपरिक सहयोगी है, इस समूह से बाहर है।


वायरल विचार: सिद्धांतों से ऊपर शक्ति

C5 का मुख्य उद्देश्य है: प्रमुख वैश्विक शक्तियों के लिए एक मंच बनाना। इस समूह में सदस्य बनने के लिए देश का धनी और लोकतांत्रिक होना अनिवार्य नहीं होगा। इसके बजाय, यह देश की आबादी, सैन्य ताकत और आर्थिक बल पर ध्यान केंद्रित करेगा।

G7 का नियम: अमीर और लोकतंत्र होना चाहिए।

C5 का नियम: एक प्रमुख शक्ति होनी चाहिए (अक्सर 100 मिलियन से अधिक आबादी वाली)।

'वैचारिक क्लब' से 'कठोर-शक्ति क्लब' की ओर यह बदलाव ही इस विचार को इतना *ट्रंपियन* बनाता है और सुर्खियों में छा जाने की सबसे बड़ी वजह है। यह केवल सबसे बड़े खिलाड़ियों के बीच सीधे सौदों के माध्यम से चीजों को पूरा करने पर ज़ोर देता है।


यह विस्फोटक विचार कहाँ से आया?

यह चर्चा तब शुरू हुई जब अमेरिकी प्रकाशन पॉलिटिको (Politico) ने नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी (NSS) के एक लंबे, अप्रकाशित मसौदे पर रिपोर्ट दी, जो कथित तौर पर ट्रंप व्हाइट हाउस द्वारा तैयार किया गया था।

हालांकि व्हाइट हाउस ने आधिकारिक तौर पर NSS के किसी भी "गुप्त संस्करण" के अस्तित्व से इनकार किया है, राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस अवधारणा में एक विशिष्ट "ट्रंपियन स्पर्श" है।

> विशेषज्ञ की राय: "यह इस बात के अनुरूप है कि हम राष्ट्रपति ट्रंप दुनिया को कैसे देखते हैं - जो गैर-वैचारिक है, मजबूत खिलाड़ियों के प्रति सहानुभूति रखता है, और अन्य महान शक्तियों के साथ सहयोग करने की प्रवृत्ति रखता है जो अपने क्षेत्र में प्रभाव बनाए रखते हैं।"

> टॉरी टॉसिग, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में यूरोपीय मामलों की पूर्व निदेशक।


geopolitical  C5 का एजेंडा क्या होगा? (पहला हॉट टॉपिक)

कोर फाइव सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए नहीं मिलेंगे। वे दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण और जटिल मुद्दों का समाधान करेंगे।

उनके पहले शिखर सम्मेलन का प्रस्तावित एजेंडा?

मध्य पूर्व सुरक्षा

इज़रायल और सऊदी अरब के बीच संबंधों को सामान्य बनाना

यह फोकस दर्शाता है कि यह समूह उच्च दांव वाली, लेनदेन-आधारित कूटनीति के लिए डिज़ाइन किया गया है - पुराने, बड़े मंचों जैसे G20 या संयुक्त राष्ट्र में लंबे समय से अटके हुए मुद्दों पर सफलता के लिए पांच राष्ट्रों के सामूहिक प्रभाव का उपयोग करना।


वैश्विक भूकंप: कौन उत्साहित और कौन डरा हुआ है?

C5 के संभावित गठन से अंतरराष्ट्रीय राजनयिक हल्कों में जबरदस्त हलचल मच गई है।


भारत के लिए जीत?

भारत के लिए, एक ऐसा देश जो अक्सर महसूस करता है कि वैश्विक शासन में उसके विशाल आकार और बढ़ती शक्ति को कम आंका जाता है, C5 में जगह मिलना एक *बहुत बड़ी राजनयिक उन्नति* है। यह औपचारिक रूप से भारत को दुनिया के सबसे प्रभावशाली राष्ट्रों के साथ एक गैर-परक्राम्य, आवश्यक वैश्विक शक्ति के रूप में मान्यता देता है।


G7 का पतन?

C5 सीधे तौर पर G7 के लिए एक चुनौती है। यूरोप की अधिकांश शक्तियों को छोड़कर और रूस तथा चीन को शामिल करके, अमेरिका अपने सबसे पुराने लोकतांत्रिक सहयोगियों को किनारे कर देगा। संदेश स्पष्ट है: पश्चिमी लोकतांत्रिक एकता पर बना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का वैश्विक क्रम, शुद्ध भू-राजनीतिक शक्ति पर आधारित एक नए क्रम को रास्ता दे सकता है।


सहयोगियों की चिंताएँ:

यूरोप और लोकतांत्रिक दुनिया में अमेरिका के सहयोगी चिंतित हैं। वे C5 के कदम को इस रूप में देखते हैं:

"मजबूत शासकों" को वैधता देना: रूस और चीन जैसे देशों को उनकी राजनीतिक प्रणालियों की परवाह किए बिना बढ़ावा देना।

पश्चिमी एकता को कमजोर करना: यह उत्तरी अमेरिका और यूरोप के बीच लंबे समय से चले आ रहे गठबंधन को तोड़ सकता है, जिससे नाटो (NATO) और अन्य पश्चिमी संस्थाएं संभावित रूप से कमजोर हो सकती हैं।


नीति में यू-टर्न?

C5 पिछली प्रशासनों की "ग्रेट पावर कॉम्पिटिशन" नीति से भी एक बड़ा बदलाव है, जिसने चीन को अमेरिका के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा था। चीन को एक विशिष्ट, निर्णय लेने वाले क्लब में लाना, कुछ विशेषज्ञों द्वारा प्रतिस्पर्धा और नियंत्रण पर केंद्रित नीति से एक कट्टरपंथी प्रस्थान के रूप में देखा जाता है।


अंतिम बात: क्या C5 बन रहा है?

फिलहाल, C5 कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं बल्कि एक उच्च-स्तरीय प्रस्ताव है, लेकिन विचार की शक्ति इतनी ज़बरदस्त है कि यह पहले ही वायरल हो चुका है।

चाहे यह वास्तविकता बने या सिर्फ एक खाका रहे, 'कोर फाइव' की अवधारणा वर्तमान वैश्विक मिज़ाज को पूरी तरह से दर्शाती है: आदर्श-संचालित राजनीति से दूर और एक कच्चे, शक्ति-आधारित कूटनीति की ओर बढ़ना, जहाँ सबसे बड़े खिलाड़ी ही नियम बनाते हैं।

दुनिया देख रही है: क्या वैश्विक शासन का भविष्य एक नए, शक्ति-केंद्रित अमेरिका-रूस-चीन-भारत-जापान सुपरक्लब द्वारा तय किया जाएगा?


आपकी क्या राय है?

क्या कोर फाइव (C5) G7 की जगह लेगा? क्या भारत इस नए सुपरक्लब में शामिल होने के लिए तैयार है? नीचे कमेंट्स में हमें बताएं!

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